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Vidhaata

This poem I have learnt in my school days, today some words reminded me of this and strangely I remembered the whole poem :

विधाता ने मुझको बनाया था जिस दिन
धरती पर तूफ़ान आया था उस दिन
मुझे देख सूरज को गश आ गया था
मेरे रूप से चाँद चकरा गया था !

तारीफ अपनी करूँ या खुदा की,
तकदीर के लेख लिखने थे बाकी,
लिखा उसने यह कोई लीडर बनेगा,
वकालत करेगा या प्लीडर बनेगा,
बनेगा कसीजीन घोड़ों का मालिक,
हजारों का लान्खों करोडो का मालिक,
ये दुनिया में हलचल मचाता रहेगा,
सदा मुफ्त का माल खता रहेगा,
सभी वार होंगे इसके हक में ही अक्सर,
मंगल, ब्रहस्पति, शुक्र और शनीश्चर !

पड़ा लेख मैंने विधाता का लिखा,
शनिश्चर की ‘नी’ को गलत उसने लिखा,
में बोला लिखा आपने ‘नी’ गलत है,
शनिश्चर में लिखना बड़ी ‘ई’ गलत है !

वो बोला की तू क्यों तरक कर रहा है,
बड़ी छोटी ‘ई’ में फरक कर रहा है,
अभी तो तू पैदा हुआ भी नहीं है,
तुझे क्या पता क्या गलत क्या सही है,
अभी से अगर इतनी हिम्मत है तेरी,
तू लिखने में गलती पकड़ता है मेरी,
करेगा न जाने तू क्या जन्म पा कर,
मेरी पोल खोलेगा दुनिया में जा कर,
तू पहला ही है और है आखिरी भी,
जिसने विधाता की गलती सही की !

तेरे भाग्य को तो मैं चमका रहा था,
शनिश्चर से इतवार तक आ रहा था,
इसीको मैं लिखता हूँ  अब तेरे सर पर,
शनिश्चर शनिश्चर शनिश्चर शनिश्चर…

दिया श्राप उसने यूंह गुस्से में आके,
नहीं चैन पायेगा दुनिया में जाके,
जनम लेके यूँही भटकता रहेगा,
सदा गलतियाँ ठीक करता रहेगा,
फटे हाल होगा, फटीचर रहेगा,,,

उम्र भर तू हिंदी का टीचर रहेगा ||

By Akanksha Saxena

I am a learner, who learns each and everything that comes into her path. Through blogging I am learning to interrupt my spreaded flow of thoughts and give it a noticable shape. I tried this before also with my diary entries but those papers are now saving themselves to come in front of anyone, even me. Actually, I have kept them somewhere very carefully but the thing is somewhere and now somewhere is missing. So, I got this way which can't be missed somewhere :)
I welcome new ideas and changes, if someone wants to share his/her views on my write ups, please don't hesitate to leave comments. It will be taken positively [:)]

5 replies on “Vidhaata”

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